क्योकि हम ग़रीब है
कोरोना महामारी ने पुरे विश्व में अपना जाल फैला रखा है और इससे हमारा भारत देश भी बहुत ज्यादा प्रभावित है और इस महामारी से भारत को आर्थिक रूप से बहुत परेशानी उठानी पड़ी है | पुरे देश में इस बात की रिपोर्ट है की मजदूरों , किसानो , कचड़े बीनने , पशु पालन , मछवारों को ज़िन्दगी जीना मुश्किल हो गया है | इस लॉक डाउन ने आम ज़िन्दगी के साथ रोजगार पर भि बहुत बड़ा प्रहार किया है | हम सब जानते है की सरकार की कई नीति हम गरीबो के लिए होती है , लेकिन इसका हमे कभी लाभ नहीं मिलता | इस लॉक डाउन में हमें घर पर ही रहने की नसीहत दी गयी है | इनमें अनेक तो भुकमरी तक का सामना कर रहे है , क्युकी कम बचत वाले लाखो परिवारों के पास आने वाले हफ्तों में भोजन और आवश्यक सामग्री को जुटाने का कोई रास्ता नहीं बचेगा , इससे एक और अभूतपूर्व मानवीय संकट पैदा हो गया है | इन गतिवीथी में सरकार को जरूरतमंदो को उनकी आजीविका के लिए मुलभूत उपाय उपलब्ध कराये | आर्थिक गति विधियो ठप होने के कारण आम रोजगार के अवसर भी कम हो गये है | सरकार के पास अभी 2.4 करोड़ टन के स्टॉक की तुलना में 7.7 करोड़ टन आनाज का भंडार है , और सरकार अभी रबी के चार करोड़ टन का भी खाद्यान खरीद करने जा रही है | ऐसे में देश ने 130 करोड़ की जनशख्या में से 80 फीसदी लोग मध्यम और पिछड़े वर्ग से है |
सवाल यह है की खाद्यान का वितरण कैसे हो ? यह साफ़ है की मौजूदा सूचि इसके लिए अपर्याप्त है , क्योकि इसमें बहुत सरे जरूरतमंदो के नाम नहीं है | 2011 की जनगणना के आधार पे बने राष्ट्रीया खाद्य सुरक्षा कानून से कम से कम 10 करोड़ बाहर है | इसलिए इसे बाटने का सबसे अच्छा तरीका ये हो सकता है की इससे घर पर जा कर दिया जाये जिस तरह सरकार अपने चुनाव के समय घर- घर जाकर चुनाव का प्रचार का परचा बटाती है | ग्राणीण भारत में अधिकतर घरो में मनरेगा या पेंशन कार्ड है | शहरी गरीबो में अधिकतर प्रवासी मजदूर , देहादि या ठेके पे काम करने वाले लोग , घरेलु नौकर , रेहड़ी खोमचे वाले , पान घुमती वाले व कूड़ा बीनने वाले लोग है | इनका कोई वयापक रिकॉर्ड भी नहीं है | इसमे चुनाव में प्रयोग होने वाली स्याही का प्रयोग किया जा सकता है जिससे पता चल सके की इनको रासन मिला है या नहीं | इसके साथ गरीबो के आश्रय , पेयजल की आपूर्ति व स्वछता भी शामिल हो | कम से कम इस महामरी के जारी रहने तक निजी अस्पतालो के भी राष्ट्रीयकरण की जरूरत है |
इन सभी उपायों के लिए हमें स्थानीय प्रशासन पर निर्भर होना पड़ेगा और इनका ईमानदार तथा जिम्मेदार होना बहुत जरुरी है | इनके बिना इस महामारी से नहीं निपटा जा सकता | यह महामारी भारत के कामकाजी लोगो के द्वारा नहीं फैली और इसके भार उठाने का दवाव इन गरीबो पर नहीं डालना चाहिए |
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