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Monday, April 27, 2020

KYUKI HUM GAREEB HAI

क्योकि   हम ग़रीब है 
 कोरोना  महामारी  ने   पुरे  विश्व  में  अपना  जाल  फैला  रखा  है  और  इससे  हमारा   भारत  देश  भी  बहुत   ज्यादा  प्रभावित  है  और   इस  महामारी  से  भारत  को  आर्थिक  रूप  से  बहुत  परेशानी   उठानी  पड़ी  है  |  पुरे  देश  में  इस  बात  की  रिपोर्ट  है  की  मजदूरों , किसानो , कचड़े  बीनने , पशु  पालन  , मछवारों  को  ज़िन्दगी  जीना  मुश्किल  हो  गया  है  |  इस  लॉक डाउन  ने   आम  ज़िन्दगी  के  साथ  रोजगार  पर  भि  बहुत  बड़ा  प्रहार  किया  है  |  हम  सब  जानते  है  की  सरकार  की  कई  नीति  हम  गरीबो  के  लिए  होती  है ,  लेकिन  इसका  हमे  कभी  लाभ  नहीं  मिलता |   इस  लॉक डाउन  में  हमें  घर  पर  ही   रहने  की  नसीहत  दी  गयी  है  |  इनमें  अनेक  तो  भुकमरी  तक  का  सामना  कर  रहे  है , क्युकी  कम  बचत  वाले  लाखो  परिवारों  के  पास  आने  वाले  हफ्तों   में  भोजन  और  आवश्यक  सामग्री  को  जुटाने  का  कोई  रास्ता  नहीं  बचेगा  ,  इससे  एक  और  अभूतपूर्व  मानवीय  संकट  पैदा  हो  गया  है |  इन   गतिवीथी  में  सरकार  को  जरूरतमंदो   को  उनकी आजीविका  के  लिए  मुलभूत   उपाय   उपलब्ध  कराये  |  आर्थिक गति विधियो   ठप   होने  के  कारण   आम  रोजगार  के  अवसर  भी  कम  हो  गये   है  |  सरकार  के  पास  अभी  2.4  करोड़  टन  के  स्टॉक  की  तुलना  में  7.7  करोड़  टन  आनाज  का  भंडार  है , और  सरकार  अभी  रबी  के  चार  करोड़  टन  का  भी  खाद्यान  खरीद  करने  जा  रही   है  |  ऐसे  में  देश  ने  130  करोड़  की  जनशख्या   में  से  80  फीसदी  लोग  मध्यम  और  पिछड़े  वर्ग  से  है  |

 सवाल  यह  है  की  खाद्यान  का  वितरण  कैसे  हो  ? यह  साफ़  है  की  मौजूदा  सूचि  इसके  लिए  अपर्याप्त  है , क्योकि  इसमें   बहुत  सरे  जरूरतमंदो  के  नाम  नहीं  है |   2011  की  जनगणना  के  आधार  पे  बने  राष्ट्रीया  खाद्य   सुरक्षा  कानून  से  कम  से  कम  10  करोड़  बाहर  है  |  इसलिए  इसे  बाटने  का  सबसे  अच्छा  तरीका  ये  हो  सकता  है  की  इससे  घर  पर  जा  कर  दिया  जाये  जिस  तरह  सरकार  अपने  चुनाव  के  समय  घर- घर  जाकर  चुनाव  का  प्रचार  का  परचा  बटाती  है |  ग्राणीण  भारत  में  अधिकतर  घरो  में   मनरेगा या पेंशन कार्ड  है  |   शहरी  गरीबो  में  अधिकतर  प्रवासी  मजदूर  , देहादि  या  ठेके  पे  काम  करने  वाले  लोग , घरेलु नौकर , रेहड़ी खोमचे  वाले  , पान  घुमती  वाले  व  कूड़ा  बीनने  वाले  लोग  है  |  इनका  कोई वयापक  रिकॉर्ड  भी  नहीं  है  |  इसमे  चुनाव  में  प्रयोग  होने  वाली  स्याही  का  प्रयोग  किया  जा सकता  है  जिससे  पता  चल  सके  की  इनको  रासन  मिला  है  या  नहीं  |  इसके  साथ  गरीबो  के  आश्रय , पेयजल  की  आपूर्ति  व   स्वछता भी  शामिल  हो  |  कम  से  कम  इस  महामरी  के  जारी  रहने  तक  निजी  अस्पतालो  के  भी  राष्ट्रीयकरण  की  जरूरत  है |  

 इन    सभी   उपायों  के  लिए  हमें  स्थानीय  प्रशासन  पर  निर्भर  होना  पड़ेगा  और  इनका  ईमानदार  तथा  जिम्मेदार  होना  बहुत  जरुरी  है  | इनके  बिना  इस  महामारी  से  नहीं  निपटा   जा  सकता  |  यह  महामारी  भारत  के  कामकाजी  लोगो  के  द्वारा  नहीं  फैली  और  इसके   भार  उठाने   का  दवाव  इन  गरीबो   पर  नहीं  डालना  चाहिए  |               
                  

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