Your Love is Enough for Me
यह गम क्या दिल की आदत है? नहीं तो
किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो
किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो
है वो इक ख्वाब-ए-बे ताबीर इसको
भुला देने की नीयत है? नहीं तो
भुला देने की नीयत है? नहीं तो
किसी के बिन किसी की याद के बिन
जिए जाने की हिम्मत है ? नहीं तो
जिए जाने की हिम्मत है ? नहीं तो
किसी सूरत भी दिल लगता नहीं? हाँ
तू कुछ दिन से यह हालत हैं? नहीं तो
तू कुछ दिन से यह हालत हैं? नहीं तो
तेरे इस हाल पर हैं सब को हैरत
तुझे भी इस पर हैरत है? नहीं तो
तुझे भी इस पर हैरत है? नहीं तो
वो दरवेशी जो तज कर आ गया.....तू
यह दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो
यह दौलत उस की क़ीमत है? नहीं तो
हुआ जो कुछ यही मक़्सूम था क्या
यही सारी हकायत है ? नहीं तो
यही सारी हकायत है ? नहीं तो
अज़ीयत नाक उम्मीदों से तुझको
अमन पाने की हसरत है? नहीं तो
अमन पाने की हसरत है? नहीं तो
~ जॉन एलिया
ग़ज़ल-
नाज़ उसके उठा के रखता हूं
दिल में महमां बना के रखता हूं।
दर्द से इस कदर मोहब्बत है
दर्द दिल में छुपा के रखता हूं।
चाक होते जिगर के ज़ख़्मों पर
गम के फोहे लगा के रखता हूं।
रहमते मुझ पे भी तो बरसेगी
आस ऐसी लगा के रखता हूं।
देर होगी उन्हें तो आने में
घर के चिलमन हटा के रखता हूं।
शोर बरपा हुआ कयामत का
खुद को बहरा बना के रखता हूं।
देख सारे फरेब दुनिया के
पुण्य अपने बचा के रखता हूं।।
दिल में महमां बना के रखता हूं।
दर्द से इस कदर मोहब्बत है
दर्द दिल में छुपा के रखता हूं।
चाक होते जिगर के ज़ख़्मों पर
गम के फोहे लगा के रखता हूं।
रहमते मुझ पे भी तो बरसेगी
आस ऐसी लगा के रखता हूं।
देर होगी उन्हें तो आने में
घर के चिलमन हटा के रखता हूं।
शोर बरपा हुआ कयामत का
खुद को बहरा बना के रखता हूं।
देख सारे फरेब दुनिया के
पुण्य अपने बचा के रखता हूं।।
कर्म करता चल सदा ,
सोच मत तू फल सदा ।
सौ वर्ष की यग्य में ,
बनके हावि तू जल सदा ।।
सोच मत तू फल सदा ।
सौ वर्ष की यग्य में ,
बनके हावि तू जल सदा ।।
पास से देखो जुगनू आशु , दूर से देखो तारा अंशु ,
मै फूलो की सेज पे बैठा आधी रात का तनहा आशु ,
मेरी इन आँखों ने अक्शर ग़म के दोनों पहलु देखे ,
ठहर गया तो पत्थर आशु ,बह निकला तोह दरिया आशु ,
प्यार अजब तलवार हैं जिस पर हम दोनों के नाम लिखे है ,
मेरी आँख में तेरा आशु , तेरी आँख में मेरा आशु
अपने बचपन का किस्सा है , इक तस्वीर बनायीं उसने ,
मेहदी वाले हाथ रचे है , बीच हथेली टपका आशु
मौसम की खुश्बू में अक्सर ग़म की खुश्बू मिल जाती है ,
आमो के बागो में कैसे सावन-सावन बरसा आशु ।
जिक्र होता है तेरा हर एक महफ़िल मे मेरी ,
ना जाने वह कोनसी हसीं रात होगी ।
ना जाने वह कोनसी हसीं रात होगी ।
मोहब्बत भी होगा और मुलाकात भी ,
ना जाने कब तू मेरे पास होगी ।
ना जाने कब तू मेरे पास होगी ।
चाहा है तुझको जमाने से बढ़ कर ,
आखिर तू भी किसी के लिए परेशान होगी ।
आखिर तू भी किसी के लिए परेशान होगी ।
सितम भी है कितना बताऊँ मै कैसे ,
मोहब्बत से मेरे तू अनजान होगी ।
मोहब्बत से मेरे तू अनजान होगी ।
हुस्ने मन्ज़ार के आशिक़ तोह सब है ,
तेरे भी दिल की कोई आवाज होगी ।
तेरे भी दिल की कोई आवाज होगी ।
मिलता है सुकून बताऊँ मै कैसे ,
मेरे देखने पर तू हैरान होगी ।
मेरे देखने पर तू हैरान होगी ।
दस्ताने मोहब्बत लिखा है तोह सब ने ,
यादे मोहब्बत सिर्फ तेरे नाम होगी ।
यादे मोहब्बत सिर्फ तेरे नाम होगी ।
* परवेज आलम *
समझौतों की भीड़ -भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया
इतने घुटने टेके हमने आख़िर घुटना टूट गया
इतने घुटने टेके हमने आख़िर घुटना टूट गया
देख शिकारी तेरे कारन एक परिंदा टूट गया
पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेलिन शीशा टूट गया
पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेलिन शीशा टूट गया
घर का बोझ उठाने वाले ब्च्चे की तक़दीर न पूछ
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया
किसको फ़ुर्सत इस महफ़िल में ग़म की कहानी पढ़ने की
सूनी कलाई देख के लेकिन चूड़ी वाला टूट गया
सूनी कलाई देख के लेकिन चूड़ी वाला टूट गया
पेट की ख़ातिर फ़ुटपाथों पे बेच रहा हूँ तस्वीरें
मैं क्या जानूँ रोज़ा है या मेरा रोज़ा टूट गया
मैं क्या जानूँ रोज़ा है या मेरा रोज़ा टूट गया
ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में
टूटा-फूटा नाच रहा है अच्छा-ख़ासा टूट गया
टूटा-फूटा नाच रहा है अच्छा-ख़ासा टूट गया
आँखों की दहलीज़ पे आकर बैठ गयी
तेरी सूरत ख़्वाब सजाकर बैठ गयी
कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैंने
फ़ौरन उस पर तितली आकर बैठ गयी
ताना-बाना बुनते-बुनते हम उधड़े
हसरत फिर थककर, ग़श खाकर बैठ गयी
खोज रहा है आज भी वो गूलर का फूल
दुनिया तो अफ़वाह उड़ाकर बैठ गयी
रोने की तरकीब हमारे आई काम
ग़म की मिट्टी पानी पाकर बैठ गयी
वो भी लड़ते-लड़ते जग से हार गया
चाहत भी घर-बार लुटाकर बैठ गयी
बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन
गुड़ियों का अम्बार लगाकर बैठ गयी
अबके चराग़ों ने चौंकाया दुनिया को
आँधी आख़िर में झुँझलाकर बैठ गयी
एक से बढ़कर एक थे दाँव शराफ़त के
जीत मगर हमसे कतराकर बैठ गयी
तेरे शह्र से होकर आई तेज़ हवा
फिर दिल की बुनियाद हिलाकर बैठ गयी
तेरी सूरत ख़्वाब सजाकर बैठ गयी
कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैंने
फ़ौरन उस पर तितली आकर बैठ गयी
ताना-बाना बुनते-बुनते हम उधड़े
हसरत फिर थककर, ग़श खाकर बैठ गयी
खोज रहा है आज भी वो गूलर का फूल
दुनिया तो अफ़वाह उड़ाकर बैठ गयी
रोने की तरकीब हमारे आई काम
ग़म की मिट्टी पानी पाकर बैठ गयी
वो भी लड़ते-लड़ते जग से हार गया
चाहत भी घर-बार लुटाकर बैठ गयी
बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन
गुड़ियों का अम्बार लगाकर बैठ गयी
अबके चराग़ों ने चौंकाया दुनिया को
आँधी आख़िर में झुँझलाकर बैठ गयी
एक से बढ़कर एक थे दाँव शराफ़त के
जीत मगर हमसे कतराकर बैठ गयी
तेरे शह्र से होकर आई तेज़ हवा
फिर दिल की बुनियाद हिलाकर बैठ गयी
😶😊
Howdee.
ReplyDeleteStay healthy.
Shukriya
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